Thursday, 10 October 2013

पुरानी डायरी पढ़ते पढ़ते...

पुरानी डायरी पढ़ते पढ़ते,
पन्नो को पलटाने में,
मैंने जीभ पे उंगली रखी,
तीखा सा कुछ स्वाद लगा,

धीरे धीरे मेरी जुबां से
जहन-ओ-दिल तक बढ़ता गया.
मैंने फिर कुछ गौर किया,
गज़लों के कुछ जुमलो पर,
लफ्जो को दोबारा पढ़ा,
फिरसे सोचा उन मसलों पर
हर लफ्ज खफा खफा सा था,
लहजा भी बड़ा नाराज लगा,
उन सीधे साधे शब्दों में,
उस तीखेपन राज लगा।

"फुरकत" था वो लफ्ज जहा,
मैंने उंगली रखी थी,
पहली बार उस दिन मैंने,
एक अपनी ग़ज़ल ही चखी थी।