Thursday, 19 December 2013

एक और शाम..

एक और शाम तनहा गुज़र गयी फिरसे,
बीती शामो पे नज़र गयी फिरसे।

चाँद निकला औ मेरे कमरे में,
चांदनी यादे बिखर गयी फिरसे।
बीती शामो पे नज़र गयी फिरसे।

सब जानकार भी नादाँ तन्हाई,
तुझसे मिलने कि ज़िद कर गयी फिरसे।
बीती शामो पे नज़र गयी फिरसे।

लौट आने कि उम्मीद बहोत कम है 'शफक',
ये तबस्सुम अब अगर गयी फिरसे।
बीती शामो पे नज़र गयी फिरसे।

Thursday, 10 October 2013

पुरानी डायरी पढ़ते पढ़ते...

पुरानी डायरी पढ़ते पढ़ते,
पन्नो को पलटाने में,
मैंने जीभ पे उंगली रखी,
तीखा सा कुछ स्वाद लगा,

धीरे धीरे मेरी जुबां से
जहन-ओ-दिल तक बढ़ता गया.
मैंने फिर कुछ गौर किया,
गज़लों के कुछ जुमलो पर,
लफ्जो को दोबारा पढ़ा,
फिरसे सोचा उन मसलों पर
हर लफ्ज खफा खफा सा था,
लहजा भी बड़ा नाराज लगा,
उन सीधे साधे शब्दों में,
उस तीखेपन राज लगा।

"फुरकत" था वो लफ्ज जहा,
मैंने उंगली रखी थी,
पहली बार उस दिन मैंने,
एक अपनी ग़ज़ल ही चखी थी।

Sunday, 14 July 2013

......तॊ अच्छा है

मुझॆ बस एक तॆरी ही आदत हॊ तॊ अच्छा है,
इश्क मॆ बस सलिखा‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍ ए इबादत हॊ तॊ अच्छा है.

तुझॆ छूनॆ सॆ डरता हु, की तु मैला ना हॊ जायॆ,
सॊचता हु कि लहजॆ मॆ नज़ाकत हॊ तॊ अच्छा है.
इश्क मॆ बस सलिखा‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍ ए इबादत हॊ तॊ अच्छा है.

मॆरा हक़ है, जताउ इश्क मै अपनॆ तरीकॆ सॆ,
मगर उसपर‌ अगर तॆरी इज़ाज़त हॊ तॊ अच्छा है.
इश्क मॆ बस सलिखा‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍ ए इबादत हॊ तॊ अच्छा है.

खुलकर बया करना बडा आसान है लॆकीन,
बडा मसुम रिश्ता है, हिफाज़त हॊ तॊ अच्छा है.
इश्क मॆ बस सलिखा‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍ ए इबादत हॊ तॊ अच्छा है.

'शफक़' सञीदगी तुम पर यकीनन खुब जचती है,
मगर् यॆ इश्क़् है, इसमॆ शरारत हॊ तॊ अच्छा है.
इश्क मॆ बस सलिखा‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍ ए इबादत हॊ तॊ अच्छा है.

Sunday, 7 July 2013

अब जरुरी है

अब जरुरी है हमॆ खुदगर्ज़ हॊना चाहीयॆ,
यॆ मर्ज़ है अगर तॊ यॆ मर्ज़ हॊना चाहीयॆ.

उसनॆ यु लीया कुछ जायजा मा की तबीयत का,
तकल्लुफ सा लग रहा था जॊ फर्ज़ हॊना चाहीयॆ.
यॆ मर्ज़ है अगर तॊ यॆ मर्ज़ हॊना चाहीयॆ.

दौलत ऒ जायदाद बहॊत दॆ दीया अब् तक,
बच्चॊ कॆ हिस्सॆ मॆ पीता का कर्ज़ हॊना चाहीयॆ.
यॆ मर्ज़ है अगर तॊ यॆ मर्ज़ हॊना चाहीयॆ.

Friday, 21 June 2013

भरम टुट गयॆ...

तहजीबॊ औ तकल्लुफ कॆ सब वहम टुट गयॆ,
इश्क कॆ बचॆ कुचॆ भरम टुट गयॆ.

रिश्तॆ कॆ टुटनॆ का बडा गम रहा उसॆ,
एक  नज़र भी नही दॆखा कीतनॆ हम टुट गयॆ.
इश्क कॆ बचॆ कुचॆ सब भरम टुट गयॆ

Wednesday, 13 February 2013

Kuchh Sher....


Jab tere shahar ki sarhad se gujarata hu,
Mai apne dard ki had se gujarata hu.
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mai jab tak dil-o-dimag se zinda rahunga 
har saal is tarikh pe sharminda rahunga 
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उम्मीद को कल तक की और मोहलत उधार दी है, 
आजकी शाम फीर तेरे मुंतजीर गुजार दी है. 
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जब तेरे शहर से होकर आता है, 
चाँद दामन में क्या क्या लाता है
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सुना आँगन-ओ-दीवार-ओ-दर देखो. 
बच्चो के बड़े होने का असर देखो. 
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फिर टूटना है, बिखरना है मुझे, 
फिर तेरे शहर से गुजरना है मुझे.
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ऐसा नहीं की तेरे बर्ताव पे ऐतराज़ नहीं, 
मै नाखुश हु बहोत, हा मगर नाराज़ नहीं. 
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